जपे है विर्द सा तुझ से सनम के नाम को शैख़
नमाज़ तोड़ उठे तेरे राम राम को शैख़
वली उज़लत
जिस पर नज़र पड़े उसे ख़ुद से निकालना
रौशन-दिलों का काम है मानिंद-ए-आईना
वली उज़लत
जिस पर नज़र पड़े उसे ख़ुद से निकालना
रौशन-दिलों का काम है मानिंद-ए-आईना
वली उज़लत
जो आशिक़ हो उसे सहरा में चल जाने से क्या निस्बत
जुज़ अपनी धूल उड़ाना और वीराने से क्या निस्बत
वली उज़लत
जो हम ये तिफ़लों के संग-ए-जफ़ा के मारे हैं
बुतों का शिकवा नहीं हम ख़ुदा के मारे हैं
वली उज़लत
जो हम ये तिफ़लों के संग-ए-जफ़ा के मारे हैं
बुतों का शिकवा नहीं हम ख़ुदा के मारे हैं
वली उज़लत
कहा जो मैं ने गया ख़त से हाए तेरा हुस्न
तो हँस के मुझ को कहा पश्म से गया तो गया
वली उज़लत