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2 लाइन शायरी शायरी | शाही शायरी

2 लाइन शायरी

22761 शेर

अश्क-बारी से ग़म-ओ-दर्द की खेती-बाड़ी
लहलही सी नज़र आती है हरी रहती है

वलीउल्लाह मुहिब




अश्क-बारी से ग़म-ओ-दर्द की खेती-बाड़ी
लहलही सी नज़र आती है हरी रहती है

वलीउल्लाह मुहिब




ब-मअ'नी कुफ़्र से इस्लाम कब ख़ाली है ऐ ज़ाहिद
निकल सुबहे से रिश्ता सूरत-ए-ज़ुन्नार हो पैदा

वलीउल्लाह मुहिब




ब-तस्ख़ीर-बुताँ तस्बीह क्यूँ ज़ाहिद फिराते हैं
ये लोहे के चने वल्लाह आशिक़ ही चबाते हैं

वलीउल्लाह मुहिब




ब-तस्ख़ीर-बुताँ तस्बीह क्यूँ ज़ाहिद फिराते हैं
ये लोहे के चने वल्लाह आशिक़ ही चबाते हैं

वलीउल्लाह मुहिब




बे-इश्क़ जितनी ख़ल्क़ है इंसाँ की शक्ल में
नज़रों में अहल-ए-दीद के आदम ये सब नहीं

वलीउल्लाह मुहिब




चराग़-ए-का'बा-ओ-दैर एक सा है चश्म-ए-हक़-बीं में
'मुहिब' झगड़ा है कोरी के सबब शैख़ ओ बरहमन का

वलीउल्लाह मुहिब