उस को पहुँची ख़बर कि जीता हूँ
किसी दुश्मन सेती सुना होगा
वली उज़लत
वो पल में जल-बुझा और ये तमाम रात जला
हज़ार बार पतिंगे से है चराग़ भला
वली उज़लत
वो पल में जल-बुझा और ये तमाम रात जला
हज़ार बार पतिंगे से है चराग़ भला
वली उज़लत
ऐ बंदा-परवर इतना लाज़िम है क्या तकल्लुफ़
उठिए ग़रीब-ख़ाने चलिए बिला-तकल्लुफ़
वलीउल्लाह मुहिब
ऐ दिल तुझे करनी है अगर इश्क़ से बैअ'त
ज़िन्हार कभू छोड़ियो मत सिलसिला-ए-दर्द
वलीउल्लाह मुहिब
ऐ दिल तुझे करनी है अगर इश्क़ से बैअ'त
ज़िन्हार कभू छोड़ियो मत सिलसिला-ए-दर्द
वलीउल्लाह मुहिब
अरे ओ ख़ाना-आबाद इतनी ख़ूँ-रेज़ी ये क़त्ताली
कि इक आशिक़ नहीं कूचा तिरा वीरान सूना है
वलीउल्लाह मुहिब