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2 लाइन शायरी शायरी | शाही शायरी

2 लाइन शायरी

22761 शेर

'अख़्तर'-ए-ज़ार भी हो मुसहफ़-ए-रुख़ पर शैदा
फ़ाल ये नेक है क़ुरआन से हम देखते हैं

वाजिद अली शाह अख़्तर




बराए-सैर मुझ सा रिंद मय-ख़ाने में गर आए
गिरे साग़र लुंढे शीशा हँसे साक़ी बहे दरिया

वाजिद अली शाह अख़्तर




बे-मुरव्वत हो बेवफ़ा हो तुम
अपने मतलब के आश्ना हो तुम

वाजिद अली शाह अख़्तर




बे-मुरव्वत हो बेवफ़ा हो तुम
अपने मतलब के आश्ना हो तुम

वाजिद अली शाह अख़्तर




दर-ओ-दीवार पे हसरत से नज़र करते हैं
ख़ुश रहो अहल-ए-वतन हम तो सफ़र करते हैं

वाजिद अली शाह अख़्तर




कमर धोका दहन उक़्दा ग़ज़ाल आँखें परी चेहरा
शिकम हीरा बदन ख़ुशबू जबीं दरिया ज़बाँ ईसा

वाजिद अली शाह अख़्तर




कमर धोका दहन उक़्दा ग़ज़ाल आँखें परी चेहरा
शिकम हीरा बदन ख़ुशबू जबीं दरिया ज़बाँ ईसा

वाजिद अली शाह अख़्तर