तू ग़ज़ल बन के उतर बात मुकम्मल हो जाए
मुंतज़िर दिल की मुनाजात मुकम्मल हो जाए
वहीद अख़्तर
उम्र भर मिलते रहे फिर भी न मिलने पाए
इस तरह मिल कि मुलाक़ात मुकम्मल हो जाए
वहीद अख़्तर
याद आई न कभी बे-सर-ओ-सामानी में
देख कर घर को ग़रीब-उल-वतनी याद आई
वहीद अख़्तर
याद आई न कभी बे-सर-ओ-सामानी में
देख कर घर को ग़रीब-उल-वतनी याद आई
वहीद अख़्तर
ज़ेर-ए-पा अब न ज़मीं है न फ़लक है सर पर
सैल-ए-तख़्लीक़ भी गिर्दाब का मंज़र निकला
वहीद अख़्तर
हम आज राह-ए-तमन्ना में जी को हार आए
न दर्द-ओ-ग़म का भरोसा रहा न दुनिया का
वहीद क़ुरैशी
हम आज राह-ए-तमन्ना में जी को हार आए
न दर्द-ओ-ग़म का भरोसा रहा न दुनिया का
वहीद क़ुरैशी