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रोज़ ये ख़्वाब डराता हैं मुझे | शाही शायरी
roz ye KHwab Daraata hain mujhe

ग़ज़ल

रोज़ ये ख़्वाब डराता हैं मुझे

विकास शर्मा राज़

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रोज़ ये ख़्वाब डराता है मुझे
कोई साया लिए जाता है मुझे

ये सदा काश उसी ने दी हो
इस तरह वो ही बुलाता है मुझे

मैं खिंचा जाता हूँ सहरा की तरफ़
यूँ तो दरिया भी बुलाता है मुझे

देखना चाहता हूँ गुम हो कर
क्या कोई ढूँड के लाता है मुझे

इश्क़ बीनाई बढ़ा देता है
जाने क्या क्या नज़र आता है मुझे