इन बुतों को तो मिरे साथ मोहब्बत होती
काश बनता मैं बरहमन ही मुसलमाँ के एवज़
ताबाँ अब्दुल हई
इन बुतों को तो मिरे साथ मोहब्बत होती
काश बनता मैं बरहमन ही मुसलमाँ के एवज़
ताबाँ अब्दुल हई
जब तलक रहे जीता चाहिए हँसे बोले
आदमी को चुप रहना मौत की निशानी है
ताबाँ अब्दुल हई
जिस का गोरा रंग हो वो रात को खिलता है ख़ूब
रौशनाई शम्अ की फीकी नज़र आती है सुब्ह
ताबाँ अब्दुल हई
जिस का गोरा रंग हो वो रात को खिलता है ख़ूब
रौशनाई शम्अ की फीकी नज़र आती है सुब्ह
ताबाँ अब्दुल हई
कई बारी बिना हो जिस की फिर कहते हैं टूटेगा
ये हुर्मत जिस की हो ऐ शैख़ क्या तेरा वो मक्का है
ताबाँ अब्दुल हई
कई फ़ाक़ों में ईद आई है
आज तू हो तो जान हम-आग़ोश
ताबाँ अब्दुल हई