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तेरी मख़मूर चश्म ऐ मय-नोश | शाही शायरी
teri maKHmur chashm ai mai-nosh

ग़ज़ल

तेरी मख़मूर चश्म ऐ मय-नोश

ताबाँ अब्दुल हई

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तेरी मख़मूर चश्म ऐ मय-नोश
जिन ने देखी सो हो गया ख़ामोश

कई फ़ाक़ों में ईद आई है
आज तू हो तो जान हम-आग़ोश

अपने तईं सर पे हाथ जो न रखे
उस के सर पे न मारिए पा-पोश

इश्क़ में मैं तिरे हुआ मजनूँ
किस को है अक़्ल और कहाँ है होश

पालकी भी मुझे ख़ुदा ने दी
तू भी 'ताबाँ' रहा मैं ख़ाना-ब-दोश