तेरी मख़मूर चश्म ऐ मय-नोश
जिन ने देखी सो हो गया ख़ामोश
कई फ़ाक़ों में ईद आई है
आज तू हो तो जान हम-आग़ोश
अपने तईं सर पे हाथ जो न रखे
उस के सर पे न मारिए पा-पोश
इश्क़ में मैं तिरे हुआ मजनूँ
किस को है अक़्ल और कहाँ है होश
पालकी भी मुझे ख़ुदा ने दी
तू भी 'ताबाँ' रहा मैं ख़ाना-ब-दोश
ग़ज़ल
तेरी मख़मूर चश्म ऐ मय-नोश
ताबाँ अब्दुल हई