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ऐश सब ख़ुश आते हैं जब तलक जवानी है | शाही शायरी
aish sab KHush aate hain jab talak jawani hai

ग़ज़ल

ऐश सब ख़ुश आते हैं जब तलक जवानी है

ताबाँ अब्दुल हई

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ऐश सब ख़ुश आते हैं जब तलक जवानी है
मुर्दा-दिल वो होता है जो कि शेख़ फ़ानी है

जब तलक रहे जीता चाहिए हँसे बोले
आदमी को चुप रहना मौत की निशानी है

जो कि तेरा आशिक़ है उस का ऐ गुल-ए-रअना
रंग-ए-ज़ाफ़रानी है अश्क-ए-अर्ग़वानी है

आह की नहीं ताक़त ताब नहीं है नाले की
हिज्र में तिरे ज़ालिम क्या ही ना-तवानी है

चार दिन की इशरत पर दिल लगा न दुनिया से
कहते हैं कि जन्नत में ऐश-ए-जावेदानी है

गुल-रुख़ाँ का आब-ओ-रंग देखने से मेरे है
हुस्न की गुलिस्ताँ की मुझ को बाग़बानी है

दिल से क्यूँ नहीं चाहूँ यार को कि ऐ 'ताबाँ'
दिल-रुबा है प्यारा है जिवड़ा है जानी है