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किसी रंजिश को हवा दो कि मैं ज़िंदा हूँ अभी | शाही शायरी
kisi ranjish ko hawa do ki main zinda hun abhi

ग़ज़ल

किसी रंजिश को हवा दो कि मैं ज़िंदा हूँ अभी

सुदर्शन फ़ाख़िर

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किसी रंजिश को हवा दो कि मैं ज़िंदा हूँ अभी
मुझ को एहसास दिला दो कि मैं ज़िंदा हूँ अभी

मेरे रुकते ही मिरी साँसें भी रुक जाएँगी
फ़ासले और बढ़ा दो कि मैं ज़िंदा हूँ अभी

ज़हर पीने की तो आदत थी ज़माने वालो
अब कोई और दवा दो कि मैं ज़िंदा हूँ अभी

चलती राहों में यूँही आँख लगी है 'फ़ाकिर'
भीड़ लोगों की हटा दो कि मैं ज़िंदा हूँ अभी