वो भीड़ है कि ढूँढना तेरा तो दरकिनार
ख़ुद खोया जा रहा हूँ हुजूम-ए-ख़याल में
सिराज लखनवी
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ये आधी रात ये काफ़िर अंधेरा
न सोता हूँ न जागा जा रहा है
सिराज लखनवी
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ये एक लड़ी के सब छिटके हुए मोती हैं
का'बे ही की शाख़ें हैं बिखरे हुए बुत-ख़ाने
सिराज लखनवी
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ये एक लड़ी के सब छिटके हुए मोती हैं
का'बे ही की शाख़ें हैं बिखरे हुए बुत-ख़ाने
सिराज लखनवी
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ये जज़्र-ओ-मद है पादाश-ए-अमल इक दिन यक़ीनी है
न समझो ख़ून-ए-इंसाँ बह गया है राएगाँ हो कर
सिराज लखनवी
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ये ज़मीं ख़ुद हो जन्नतों का सुहाग
यूँ हूँ आबाद सारे वीराने
सिराज लखनवी
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ये ज़मीं ख़ुद हो जन्नतों का सुहाग
यूँ हूँ आबाद सारे वीराने
सिराज लखनवी
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