दो-रंगी ख़ूब नहीं यक-रंग हो जा
सरापा मोम हो या संग हो जा
सिराज औरंगाबादी
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दो-रंगी ख़ूब नहीं यक-रंग हो जा
सरापा मोम हो या संग हो जा
सिराज औरंगाबादी
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डोरे नहीं हैं सुर्ख़ तिरी चश्म-ए-मस्त में
शायद चढ़ा है ख़ून किसी बे-गुनाह का
सिराज औरंगाबादी
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डूब जाता है मिरा जी जो कहूँ क़िस्सा-ए-दर्द
नींद आती है मुझी कूँ मिरे अफ़्साने में
सिराज औरंगाबादी
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फ़िदा कर जान अगर जानी यही है
अरे दिल वक़्त-ए-बे-जानी यही है
सिराज औरंगाबादी
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फ़िदा कर जान अगर जानी यही है
अरे दिल वक़्त-ए-बे-जानी यही है
सिराज औरंगाबादी
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ग़ैर तरफ़ क्यूँकि नज़र कर सकूँ
ख़ौफ़ है तुझ इश्क़ के जासूस का
सिराज औरंगाबादी
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