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2 लाइन शायरी शायरी | शाही शायरी

2 लाइन शायरी

22761 शेर

ऐ नूर-ए-नज़र मुंतज़िर-ए-वस्ल हूँ आ जा
दो पाट पलक के नहीं दरवाज़ा हुआ महज़

सिराज औरंगाबादी




ऐ शोख़ गुलिस्ताँ मैं नहीं ये गुल-ए-रंगीं
आया दिल-ए-सद-चाक मिरा रंग बदल कर

सिराज औरंगाबादी




बगूला जिन के सर पर चत्र-ए-शाही है ज़मीं मसनद
वही अक़्लीम-ए-ग़म में आह की नौबत बजाते हैं

सिराज औरंगाबादी




बोलता हूँ जो वो बुलाता है
तन के पिंजरे में उस का तोता हूँ

सिराज औरंगाबादी




बुत-परस्तों कूँ है ईमान-ए-हक़ीक़ी वस्ल-ए-बुत
बर्ग-ए-गुल है बुलबुलों कूँ जल्द-ए-क़ुरआन-ए-मजीद

सिराज औरंगाबादी




बुत-परस्तों कूँ है ईमान-ए-हक़ीक़ी वस्ल-ए-बुत
बर्ग-ए-गुल है बुलबुलों कूँ जल्द-ए-क़ुरआन-ए-मजीद

सिराज औरंगाबादी




दाम-ओ-क़फ़स न चाहिए दिल के शिकार कूँ
करती हैं बंद आँख के डोरों की डोरियाँ

सिराज औरंगाबादी