आई है तिरे इश्क़ की बाज़ी दिल-ओ-जाँ पर
इस वक़्त नज़र कब है मुझे सूद-ओ-ज़ियाँ पर
सिराज औरंगाबादी
आँख उठाते ही मिरे हाथ सीं मुझ कूँ ले गए
ख़ूब उस्ताद हो तुम जान के ले जाने में
सिराज औरंगाबादी
अबस इन शहरियों में वक़्त अपना हम किए ज़ाए
किसी मजनूँ की सोहबत बैठ दीवाने हुए होते
सिराज औरंगाबादी
ऐ अक़्ल निकल जा कि धुआँ आह का नहीं है
ये इश्क़ के लश्कर की सिपाही नज़र आई
सिराज औरंगाबादी
ऐ अक़्ल निकल जा कि धुआँ आह का नहीं है
ये इश्क़ के लश्कर की सिपाही नज़र आई
सिराज औरंगाबादी
ऐ नसीम-ए-सहरी बू-ए-मोहब्बत ले आ
तुर्रा-ए-यार सती इत्र की महकार कूँ खोल
सिराज औरंगाबादी
ऐ नूर-ए-नज़र मुंतज़िर-ए-वस्ल हूँ आ जा
दो पाट पलक के नहीं दरवाज़ा हुआ महज़
सिराज औरंगाबादी