जब सीं लाया इश्क़ ने फ़ौज-ए-जुनूँ
अक़्ल के लश्कर में भागा भाग है
सिराज औरंगाबादी
जीना तड़प तड़प कर मरना सिसक सिसक कर
फ़रियाद एक जी है क्या क्या ख़राबियों में
सिराज औरंगाबादी
जीना तड़प तड़प कर मरना सिसक सिसक कर
फ़रियाद एक जी है क्या क्या ख़राबियों में
सिराज औरंगाबादी
जिस कूँ पिव के हिज्र का बैराग है
आह का मज्लिस में उस की राग है
सिराज औरंगाबादी
जिस कूँ तुझ ग़म सीं दिल-शिगाफ़ी है
मरहम-ए-वस्ल इस कूँ शाफ़ी है
सिराज औरंगाबादी
जिस कूँ तुझ ग़म सीं दिल-शिगाफ़ी है
मरहम-ए-वस्ल इस कूँ शाफ़ी है
सिराज औरंगाबादी
जुनूँ के शहर में नीं कम-अयार कूँ हुर्मत
मैं नक़्द-ए-क़ल्ब कूँ काँटे में दिल के तोल चुका
सिराज औरंगाबादी