दिल में रह रह के शोर उठता है
कोई रहता है इस मकान में क्या
सिरज़ अालम ज़ख़मी
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दिल में रह रह के शोर उठता है
कोई रहता है इस मकान में क्या
सिरज़ अालम ज़ख़मी
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दिल में तूफ़ान नहीं आँख में सैलाब नहीं
ऐसे जीने से तो बेहतर था कि मर ही जाते
सिरज़ अालम ज़ख़मी
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इतना न दूर जाओ कि जीना मुहाल हो
यूँ भी न पास आओ कि दम ही निकल पड़े
सिरज़ अालम ज़ख़मी
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इतना न दूर जाओ कि जीना मुहाल हो
यूँ भी न पास आओ कि दम ही निकल पड़े
सिरज़ अालम ज़ख़मी
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ख़ुद को बचाऊँ जिस्म सँभालूँ कि रूह को
बिखरा हुआ है दर्द यहाँ से वहाँ तलक
सिरज़ अालम ज़ख़मी
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कोई शिकवा कोई गिला दे दे
मुझ को जीने का हौसला दे दे
सिरज़ अालम ज़ख़मी
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