क्या हमसरी की हम से तमन्ना करे कोई
हम ख़ुद भी अपने क़द के बराबर न हो सके
सिरज़ अालम ज़ख़मी
सदा-ए-दिल को कहीं बारयाब होना था
मिरे सवाल का कुछ तो जवाब होना था
सिरज़ अालम ज़ख़मी
तोड़े बग़ैर संग तराशे न जाएँगे
वो दिल ही क्या जो टूट के पत्थर न हो सके
सिरज़ अालम ज़ख़मी
तोड़े बग़ैर संग तराशे न जाएँगे
वो दिल ही क्या जो टूट के पत्थर न हो सके
सिरज़ अालम ज़ख़मी
वो इतनी शिद्दतों से सोचता है
कि जैसे मैं भी कोई मसअला हूँ
सिरज़ अालम ज़ख़मी
आ शिताबी सीं वगर्ना मज्लिस-ए-उश्शाक़ में
ज़ुल्म है ग़म है क़यामत है ख़राबी ऐ सनम
सिराज औरंगाबादी
आ शिताबी सीं वगर्ना मज्लिस-ए-उश्शाक़ में
ज़ुल्म है ग़म है क़यामत है ख़राबी ऐ सनम
सिराज औरंगाबादी