मल्बूस जब हवा ने बदन से चुरा लिए
दोशीज़गान-सुब्ह ने चेहरे छुपा लिए
हम ने तो अपने जिस्म पे ज़ख़्मों के आईने
हर हादसे की याद समझ के सजा लिए
मीज़ान-ए-अदल तेरा झुकाओ है जिस तरफ़
उस सम्त से दिलों ने बड़े ज़ख़्म खा लिए
दीवार क्या गिरी मिरे ख़स्ता मकान की
लोगों ने मेरे सेहन में रस्ते बना लिए
लोगों की चादरों पे बनाती रही वो फूल
पैवंद उस ने अपनी क़बा में सजा लिए
हर मरहले के दोश पे तरकश को देख कर
माओं ने अपनी गोद में बच्चे छुपा लिए
ग़ज़ल
मल्बूस जब हवा ने बदन से चुरा लिए
सिब्त अली सबा