इतना नूर कहाँ से लाऊँ तारीकी के इस जंगल में
दो जुगनू ही पास थे अपने जिन को सितारा कर रक्खा है
शोएब निज़ाम
ख़ुद से फ़रार इतना आसान भी नहीं है
साए करेंगे पीछा कोई कहीं से निकले
शोएब निज़ाम
किधर डुबो के कहाँ पर उभारता है तू
ये कैसा रंग है दरिया तिरी रवानी का
शोएब निज़ाम
किधर डुबो के कहाँ पर उभारता है तू
ये कैसा रंग है दरिया तिरी रवानी का
शोएब निज़ाम
क्या ख़त्म न होगी कभी सहरा की हुकूमत
रस्ते में कहीं तो दर-ओ-दीवार भी आए
शोएब निज़ाम
मिरी तलाश में उस पार लोग जाते हैं
मगर मैं डूब के इस पार से निकलता हूँ
शोएब निज़ाम
मिरी तलाश में उस पार लोग जाते हैं
मगर मैं डूब के इस पार से निकलता हूँ
शोएब निज़ाम