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2 लाइन शायरी शायरी | शाही शायरी

2 लाइन शायरी

22761 शेर

मिरी तलाश में वो भी ज़रूर आएगा
सो मैं भी चश्म-ए-ख़रीदार से निकलता हूँ

शोएब निज़ाम




मिरी तलाश में वो भी ज़रूर आएगा
सो मैं भी चश्म-ए-ख़रीदार से निकलता हूँ

शोएब निज़ाम




मियाँ बाज़ार को शर्मिंदा करना क्या ज़रूरी है
कहीं इस दौर में तहज़ीब के ज़ेवर बदलते हैं

शोएब निज़ाम




तुम्हारे ख़्वाब लौटाने पे शर्मिंदा तो हैं लेकिन
कहाँ तक इतने ख़्वाबों की निगहबानी करेंगे हम

शोएब निज़ाम




तुम्हारे ख़्वाब लौटाने पे शर्मिंदा तो हैं लेकिन
कहाँ तक इतने ख़्वाबों की निगहबानी करेंगे हम

शोएब निज़ाम




ये एक साया ग़नीमत है रोक लो वर्ना
ये रौशनी के बदन से लिपटने वाला है

शोएब निज़ाम




दीवार-ओ-दर पे कृष्ण की लीला के नक़्श हैं
मंदिर है ये तो 'कृष्ण' के दरबार की तरह

शोभा कुक्कल