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दुनिया से दुनिया में रह कर कैसे किनारा कर रक्खा है | शाही शायरी
duniya se duniya mein rah kar kaise kinara kar rakkha hai

ग़ज़ल

दुनिया से दुनिया में रह कर कैसे किनारा कर रक्खा है

शोएब निज़ाम

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दुनिया से दुनिया में रह कर कैसे किनारा कर रक्खा है
देख तो आ कर किस सूरत से हम ने गुज़ारा कर रक्खा है

पहले तो हम दुनिया समझे लेकिन अब एहसास हुआ है
जोश-ए-जुनूँ में हम ने ख़ुद को पारा पारा कर रक्खा है

इतना नूर कहाँ से लाऊँ तारीकी के इस जंगल में
दो जुगनू ही पास थे अपने जिन को सितारा कर रक्खा है

देख सको तो देख लो आ कर मेरा कमाल-ए-आख़िर भी तुम
शब के रंग से मिलती लौ को कैसे शरारा कर रक्खा है

इतने शोख़ कहाँ होते थे मुझ को तो यूँ लगता है
रंगों को चुपके से उस ने कोई इशारा कर रक्खा है