याद और याद को भुलाने में
उम्र की फ़स्ल कट गई देखो
शीन काफ़ निज़ाम
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याद और याद को भुलाने में
उम्र की फ़स्ल कट गई देखो
शीन काफ़ निज़ाम
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यादों की रुत के आते ही सब हो गए हरे
हम तो समझ रहे थे सभी ज़ख़्म भर गए
शीन काफ़ निज़ाम
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ज़ुल्म तो बे-ज़बान है लेकिन
ज़ख़्म को तू ज़बान कब देगा
शीन काफ़ निज़ाम
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ज़ुल्म तो बे-ज़बान है लेकिन
ज़ख़्म को तू ज़बान कब देगा
शीन काफ़ निज़ाम
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आशुफ़्ता-ख़ातिरी वो बला है कि 'शेफ़्ता'
ताअत में कुछ मज़ा है न लज़्ज़त गुनाह में
मुस्तफ़ा ख़ाँ शेफ़्ता
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ऐ ताब-ए-बर्क़ थोड़ी सी तकलीफ़ और भी
कुछ रह गए हैं ख़ार-ओ-ख़स-ए-आशियाँ हनूज़
मुस्तफ़ा ख़ाँ शेफ़्ता
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