मंज़र को किसी तरह बदलने की दुआ दे
दे रात की ठंडक को पिघलने की दुआ दे
ऐ साअत-ए-वीरान के बे-ख़्वाब फ़रिश्ते
अब चीख़ को सीने से निकलने की दुआ दे
पत्ते को परिंदों की पनाहों पे लगा दे
पेड़ों को यहाँ फूलने फलने की दुआ दे
पढ़ ऐसा वज़ीफ़ा कि ये कोहसार न उजड़े
चश्मों को पहाड़ों से उबलने की दुआ दे
अब तोड़ तकानों के तकल्लुफ़ से तअल्लुक़
पज़मुर्दा तबीअत को फिसलने की दुआ दे
आफ़ाक़ की दीवारों की आग़ोश को वा कर
अब मतला-ए-मौजूद को खुलने की दुआ दे
हम भूल ही जाएँ न किसी शक्ल-ए-सहर को
अब शब को किसी तौर से ढलने की दुआ दे
ग़ज़ल
मंज़र को किसी तरह बदलने की दुआ दे
शीन काफ़ निज़ाम