किस एहसास-ए-जुर्म की सब करते हैं तवक़्क़ो
इक किरदार किया था जिस में क़ातिल था मैं
शारिक़ कैफ़ी
किस तरह आए हैं इस पहली मुलाक़ात तलक
और मुकम्मल है जुदा होने की तय्यारी भी
शारिक़ कैफ़ी
किस तरह आए हैं इस पहली मुलाक़ात तलक
और मुकम्मल है जुदा होने की तय्यारी भी
शारिक़ कैफ़ी
क्या मिला दश्त में आ कर तिरे दीवाने को
घर के जैसा ही अगर जागना सोना है यहाँ
शारिक़ कैफ़ी
लरज़ते काँपते हाथों से बूढ़ा
चिलम में फिर कोई दुख भर रहा था
शारिक़ कैफ़ी
लरज़ते काँपते हाथों से बूढ़ा
चिलम में फिर कोई दुख भर रहा था
शारिक़ कैफ़ी
मैं किसी दूसरे पहलू से उसे क्यूँ सोचूँ
यूँ भी अच्छा है वो जैसा नज़र आता है मुझे
शारिक़ कैफ़ी