ये अक्स-ए-आब है या इस का दामन-ए-रंगीं
अजीब तरह की सुर्ख़ी सी बादबान में है
अकबर हमीदी
आँख में आँसू का और दिल में लहू का काल है
है तमन्ना का वही जो ज़िंदगी का हाल है
अकबर हैदराबादी
आँखों को देखने का सलीक़ा जब आ गया
कितने नक़ाब चेहरा-ए-असरार से उठे
अकबर हैदराबादी
बे-साल-ओ-सिन ज़मानों में फैले हुए हैं हम
बे-रंग-ओ-नस्ल नाम में तू भी है मैं भी हूँ
अकबर हैदराबादी
बुरे भले में फ़र्क़ है ये जानते हैं सब मगर
है कौन नेक कौन बद नज़र नज़र की बात है
अकबर हैदराबादी
चराग़-ए-राहगुज़र लाख ताबनाक सही
जला के अपना दिया रौशनी मकान में ला
अकबर हैदराबादी
छोड़ के माल-ओ-दौलत सारी दुनिया में अपनी
ख़ाली हाथ गुज़र जाते हैं कैसे कैसे लोग
अकबर हैदराबादी