यही सोच कर इक्तिफ़ा चार पर कर गए शैख़-जी
मिलेंगी वहाँ उन को हूर और परियाँ वग़ैरा वग़ैरा
अकबर हैदराबादी
करे वो रात की मानिंद दाग़ दाग़ मुझे
मैं रंग रंग करूँगा उसे सहर की तरह
अकबर काज़मी
अब तुझे मेरा नाम याद नहीं
जब कि तेरा पता रहा हूँ मैं
अकबर मासूम
ऐसा एक मक़ाम हो जिस में दिल जैसी वीरानी हो
यादों जैसी तेज़ हवा हो दर्द से गहरा पानी हो
अकबर मासूम
है मुसीबत में गिरफ़्तार मुसीबत मेरी
जो भी मुश्किल है वो मेरे लिए आसानी है
अकबर मासूम
जिस के बग़ैर जी नहीं सकते थे जा चुका
पर दिल से दर्द आँख से आँसू कहाँ गया
अकबर मासूम
मैं किसी और ही आलम का मकीं हूँ प्यारे
मेरे जंगल की तरह घर भी है सुनसान मिरा
अकबर मासूम