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2 लाइन शायरी शायरी | शाही शायरी

2 लाइन शायरी

22761 शेर

ब-तंग आया हूँ इस जाहिल के हाथों इस क़दर 'हातिम'
कि पानी में किताबों के डुबोने की नहीं फ़ुर्सत

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम




ब-तंग आया हूँ इस जाहिल के हाथों इस क़दर 'हातिम'
कि पानी में किताबों के डुबोने की नहीं फ़ुर्सत

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम




बुल-हवस गो करें तेरे लब-ए-शीरीं पर हुजूम
तल्ख़ मत हो कि मिठाई से मगस आती है

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम




चाँद से तुझ को जो दे निस्बत सो बे-इंसाफ़ है
चाँद के मुँह पर हैं छाईं तेरा मुखड़ा साफ़ है

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम




चाँद से तुझ को जो दे निस्बत सो बे-इंसाफ़ है
चाँद के मुँह पर हैं छाईं तेरा मुखड़ा साफ़ है

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम




चला जा मोहतसिब मस्जिद में 'हातिम' से न बहसा कर
कि ताअत उस के मशरब में सुराही और प्याला है

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम




चला जाता था 'हातिम' आज कुछ वाही-तबाही सा
जो देखा हाथ में उस के तिरे शिकवे का दफ़्तर था

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम