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2 लाइन शायरी शायरी | शाही शायरी

2 लाइन शायरी

22761 शेर

न सही जिस्म मगर ख़ाक तो उड़ती फिरती
काश जलते न कभी बाल-ओ-पर-ए-परवाना

शहज़ाद अहमद




न सही कुछ मगर इतना तो किया करते थे
वो मुझे देख के पहचान लिया करते थे

शहज़ाद अहमद




न सही कुछ मगर इतना तो किया करते थे
वो मुझे देख के पहचान लिया करते थे

शहज़ाद अहमद




नक़्श-ए-हैरत बन गई दुनिया सितारों की तरह
सब की सब आँखें खुली हैं जागता कोई नहीं

शहज़ाद अहमद




नींद आए तो अचानक तिरी आहट सुन लूँ
जाग उठ्ठूँ तो बदन से तिरी ख़ुश्बू आए

शहज़ाद अहमद




नींद आए तो अचानक तिरी आहट सुन लूँ
जाग उठ्ठूँ तो बदन से तिरी ख़ुश्बू आए

शहज़ाद अहमद




नींद आती है अगर जलती हुई आँखों में
कोई दीवाने की ज़ंजीर हिला देता है

शहज़ाद अहमद