न सही जिस्म मगर ख़ाक तो उड़ती फिरती
काश जलते न कभी बाल-ओ-पर-ए-परवाना
शहज़ाद अहमद
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न सही कुछ मगर इतना तो किया करते थे
वो मुझे देख के पहचान लिया करते थे
शहज़ाद अहमद
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न सही कुछ मगर इतना तो किया करते थे
वो मुझे देख के पहचान लिया करते थे
शहज़ाद अहमद
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नक़्श-ए-हैरत बन गई दुनिया सितारों की तरह
सब की सब आँखें खुली हैं जागता कोई नहीं
शहज़ाद अहमद
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नींद आए तो अचानक तिरी आहट सुन लूँ
जाग उठ्ठूँ तो बदन से तिरी ख़ुश्बू आए
शहज़ाद अहमद
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नींद आए तो अचानक तिरी आहट सुन लूँ
जाग उठ्ठूँ तो बदन से तिरी ख़ुश्बू आए
शहज़ाद अहमद
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नींद आती है अगर जलती हुई आँखों में
कोई दीवाने की ज़ंजीर हिला देता है
शहज़ाद अहमद
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