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न सही कुछ मगर इतना तो किया करते थे | शाही शायरी
na sahi kuchh magar itna to kiya karte the

ग़ज़ल

न सही कुछ मगर इतना तो किया करते थे

शहज़ाद अहमद

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न सही कुछ मगर इतना तो किया करते थे
वो मुझे देख के पहचान लिया करते थे

आख़िर-ए-कार हुए तेरी रज़ा के पाबंद
हम कि हर बात पे इसरार किया करते थे

ख़ाक हैं अब तिरी गलियों की वो इज़्ज़त वाले
जो तिरे शहर का पानी न पिया करते थे

अब तो इंसान की अज़्मत भी कोई चीज़ नहीं
लोग पत्थर को ख़ुदा मान लिया करते थे

दोस्तो अब मुझे गर्दन-ज़दनी कहते हो
तुम वही हो कि मिरे ज़ख़्म सिया करते थे

हम जो दस्तक कभी देते थे सबा की मानिंद
आप दरवाज़ा-ए-दिल खोल दिया करते थे

अब तो 'शहज़ाद' सितारों पे लगी हैं नज़रें
कभी हम लोग भी मिट्टी में जिया करते थे