रहने दिया न उस ने किसी काम का मुझे
और ख़ाक में भी मुझ को मिला कर नहीं गया
शहज़ाद अहमद
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रौशन भी करोगे कभी तारीकी-ए-शब को
या शम्अ की मानिंद पिघलते ही रहोगे
शहज़ाद अहमद
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सारी मख़्लूक़ तमाशे के लिए आई थी
कौन था सीखने वाला हुनर-ए-परवाना
शहज़ाद अहमद
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सारी मख़्लूक़ तमाशे के लिए आई थी
कौन था सीखने वाला हुनर-ए-परवाना
शहज़ाद अहमद
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सब की तरह तू ने भी मिरे ऐब निकाले
तू ने भी ख़ुदाया मिरी निय्यत नहीं देखी
शहज़ाद अहमद
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सफ़र भी दूर का है और कहीं नहीं जाना
अब इब्तिदा इसे कहिए कि इंतिहा कहिए
शहज़ाद अहमद
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सफ़र भी दूर का है और कहीं नहीं जाना
अब इब्तिदा इसे कहिए कि इंतिहा कहिए
शहज़ाद अहमद
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