ख़ुद ही तस्वीर बनाता हूँ मिटा देता हूँ
बुत-गरी मेरे लिए बुत-शिकनी हो जैसे
शहज़ाद अहमद
ख़ुद पर भी खोलिए न कभी दिल की वारदात
आईना सामने हो तो चेहरा छुपाइए
शहज़ाद अहमद
खुले असरार उस पर जिस्म के आहिस्ता आहिस्ता
बहुत दिन में उसे बातें न करने का हुनर आया
शहज़ाद अहमद
खुले असरार उस पर जिस्म के आहिस्ता आहिस्ता
बहुत दिन में उसे बातें न करने का हुनर आया
शहज़ाद अहमद
खुली फ़ज़ा में अगर लड़खड़ा के चल न सकें
तो ज़हर पीना है बेहतर शराब पीने से
शहज़ाद अहमद
ख़ुशा वो दर्द के लम्हे कि तेरे जाने पर
हमारी अंजुमन-ए-ग़म में लौट आए हैं
शहज़ाद अहमद
ख़्वाहिशों की धूल से चेहरे उभरते ही नहीं
हम ने कर के देख लीं ख़्वाबों की ताबीरें बहुत
शहज़ाद अहमद