करो बे-नूर महफ़िल-ए-इमरोज़
तुर्बतों पर दिए जलाते रहो
शहज़ाद अहमद
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करो बे-नूर महफ़िल-ए-इमरोज़
तुर्बतों पर दिए जलाते रहो
शहज़ाद अहमद
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ख़ामुशी ही में सही पर कभी इज़हार तो कर
इस क़दर ज़ब्त से सीना तिरा फट जाएगा
शहज़ाद अहमद
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ख़बर नहीं कि ख़ला किस जगह पे हो मौजूद
ज़मीन पर भी क़दम फूँक फूँक कर रखिए
शहज़ाद अहमद
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ख़बर नहीं कि ख़ला किस जगह पे हो मौजूद
ज़मीन पर भी क़दम फूँक फूँक कर रखिए
शहज़ाद अहमद
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ख़ल्क़ बे-परवा ख़ुदा बंदों से तंग आया हुआ
मैं अकेला फिर रहा हूँ हश्र के मैदान में
शहज़ाद अहमद
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ख़ुद ही तस्वीर बनाता हूँ मिटा देता हूँ
बुत-गरी मेरे लिए बुत-शिकनी हो जैसे
शहज़ाद अहमद
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