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2 लाइन शायरी शायरी | शाही शायरी

2 लाइन शायरी

22761 शेर

कुछ तज़किरा-ए-हुस्न से रौशन थे दर-ओ-बाम
कुछ शम्अ ने भी बज़्म को चमकाया हुआ था

शहज़ाद अहमद




कुछ तेरे सबब थी मिरे पहलू में हरारत
कुछ दिल ने भी इस आग को भड़काया हुआ था

शहज़ाद अहमद




कुछ तेरे सबब थी मिरे पहलू में हरारत
कुछ दिल ने भी इस आग को भड़काया हुआ था

शहज़ाद अहमद




क्यूँ बुलाती है मुझे दुनिया उसी के नाम से
क्या मिरे चेहरे पे उस का नाम है लिक्खा हुआ

शहज़ाद अहमद




लेते हैं लोग साँस भी अब एहतियात से
छोटा सा ही सही कोई फ़ित्ना उठाइए

शहज़ाद अहमद




लोग ज़िंदा नज़र आते थे मगर थे मक़्तूल
दस्त-ए-क़ातिल में ब-ज़ाहिर कोई शमशीर न थी

शहज़ाद अहमद




मैं अपनी जाँ में उसे जज़्ब किस तरह करता
उसे गले से लगाया लगा के छोड़ दिया

शहज़ाद अहमद