जिस से दो रोज़ भी खुल कर न मुलाक़ात हुई
मुद्दतों ब'अद मिले भी तो गिला कैसे हो
शहज़ाद अहमद
जो सामने था उस के ख़द-ओ-ख़ाल नहीं याद
वो याद रहा जिस को ज़रा देख लिया है
शहज़ाद अहमद
जो सामने था उस के ख़द-ओ-ख़ाल नहीं याद
वो याद रहा जिस को ज़रा देख लिया है
शहज़ाद अहमद
कभी कभी छलक उठता है आब ओ रंग उन का
वगरना दश्त तो सूखे हुए समुंदर हैं
शहज़ाद अहमद
कल थी ये फ़िक्र उसे हाल सुनाएँ कैसे
आज ये सोचते हैं उस को सुना क्यूँ आए
शहज़ाद अहमद
कल थी ये फ़िक्र उसे हाल सुनाएँ कैसे
आज ये सोचते हैं उस को सुना क्यूँ आए
शहज़ाद अहमद
कम नहीं है ये अज़िय्यत कि अभी ज़िंदा हूँ
अब मिरे सर पे कोई और बला क्यूँ आए
शहज़ाद अहमद