आगे निकल गए वो मुझे देखते हुए
जैसे मैं आदमी न हुआ नक़्श-ए-पा हुआ
शहज़ाद अहमद
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आगे निकल गए वो मुझे देखते हुए
जैसे मैं आदमी न हुआ नक़्श-ए-पा हुआ
शहज़ाद अहमद
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आज तक उस की मोहब्बत का नशा तारी है
फूल बाक़ी नहीं ख़ुश्बू का सफ़र जारी है
शहज़ाद अहमद
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आरज़ू की बे-हिसी का गर यही आलम रहा
बे-तलब आएगा दिन और बे-ख़बर जाएगी रात
शहज़ाद अहमद
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आरज़ू की बे-हिसी का गर यही आलम रहा
बे-तलब आएगा दिन और बे-ख़बर जाएगी रात
शहज़ाद अहमद
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आरज़ूओं ने कई फूल चुने थे लेकिन
ज़िंदगी ख़ार-बदामाँ है इसे क्या कहिए
शहज़ाद अहमद
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आता है ख़ौफ़ आँख झपकते हुए मुझे
कोई फ़लक के ख़ेमे की रस्सी न काट दे
शहज़ाद अहमद
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