अजब नहीं कि इसी बात पर लड़ाई हो
मुआहिदा ये हुआ है कि अब लड़ेंगे नहीं
शहज़ाद अहमद
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अजब नहीं कि इसी बात पर लड़ाई हो
मुआहिदा ये हुआ है कि अब लड़ेंगे नहीं
शहज़ाद अहमद
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अजनबी शहरों में तुझ को ढूँढता हूँ जिस तरह
इक गली हर शहर में तेरी गली जैसी भी है
शहज़ाद अहमद
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अपने ही अक्स को पानी में कहाँ तक देखूँ
हिज्र की शाम है कोई तो लब-ए-जू आए
शहज़ाद अहमद
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अपने लिए तो ख़ाक की ख़ुश्बू है ज़िंदगी
लाज़िम नहीं कि आब-ओ-हवा ख़ुश-गवार हो
शहज़ाद अहमद
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अपने लिए तो ख़ाक की ख़ुश्बू है ज़िंदगी
लाज़िम नहीं कि आब-ओ-हवा ख़ुश-गवार हो
शहज़ाद अहमद
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बहुत शर्मिंदा हूँ इबलीस से मैं
ख़ता मेरी सज़ा उस को मिली है
शहज़ाद अहमद
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