डूब जाएँगे सितारे और बिखर जाएगी रात
देखती रह जाएँगी आँखें गुज़र जाएगी रात
रात का पहला पहर है अहल-ए-दिल ख़ामोश हैं
सुब्ह तक रोती हुई आँखों से भर जाएगी रात
आरज़ू की बे-हिसी का गर यही आलम रहा
बे-तलब आएगा दिन और बे-ख़बर जाएगी रात
रौशनी कैसी अगर आलम अंधेरा हो गया
दिल में बस जाएगी आँखों में उतर जाएगी रात
कोई आहट भी न सुन पाएगा ख़्वाबीदा चमन
ख़ुश्क पत्तों पर दबे पाँव गुज़र जाएगी रात
दिल में रह जाएँगे तन्हाई के क़दमों के निशाँ
अपने पीछे कितनी यादें छोड़ कर जाएगी रात
शाम ही से सो गए हैं लोग आँखें मूँद कर
किस का दरवाज़ा खुलेगा किस के घर जाएगी रात
देर तक 'शहज़ाद' आँखों में फिरेगी चाँदनी
कट तो जाएगी मगर क्या कुछ न कर जाएगी रात
ग़ज़ल
डूब जाएँगे सितारे और बिखर जाएगी रात
शहज़ाद अहमद