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अक़्ल हर बात पे हैराँ है इसे क्या कहिए | शाही शायरी
aql har baat pe hairan hai ise kya kahiye

ग़ज़ल

अक़्ल हर बात पे हैराँ है इसे क्या कहिए

शहज़ाद अहमद

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अक़्ल हर बात पे हैराँ है इसे क्या कहिए
दिल बहर हाल परेशाँ है इसे क्या कहिए

बुलबुलें ताक़त-ए-गुफ़्तार से महरूम हुईं
अब ये आईन-ए-गुलिस्ताँ है इसे क्या कहिए

लोग कहते हैं कि गुलशन में बहार आई है
बू-ए-गुल फिर भी परेशाँ है इसे क्या कहिए

रहनुमा दूर बहुत दूर निकल आए हैं
क़ाफ़िला राह में हैराँ है इसे क्या कहिए

आरज़ूओं ने कई फूल चुने थे लेकिन
ज़िंदगी ख़ार-बदामाँ है इसे क्या कहिए

अपने माज़ी की हिकायात बहुत ख़ूब सही
अब नए दौर का सामाँ है इसे क्या कहिए

सोचते थे कि सहर नूर-बदामाँ होगी
तीरगी फिर भी नुमायाँ है इसे क्या कहिए

एहतिमाम-ए-सहर-ए-नौ तो करेंगे लेकिन
दिल अभी बे-सर-ओ-सामाँ है इसे क्या कहिए

मैं ने किस हाल में देखा है चमन को 'शहज़ाद'
और दिल अब भी ग़ज़ल-ख़्वाँ है इसे क्या कहिए