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2 लाइन शायरी शायरी | शाही शायरी

2 लाइन शायरी

22761 शेर

पल भर में कैसे लोग बदल जाते हैं यहाँ
देखो कि ये मुफ़ीद है बीनाई के लिए

शहरयार




पिछले सफ़र में जो कुछ बीता बीत गया यारो लेकिन
अगला सफ़र जब भी तुम करना देखो तन्हा मत करना

शहरयार




रात को दिन से मिलाने की हवस थी हम को
काम अच्छा न था अंजाम भी अच्छा न हुआ

शहरयार




रात को दिन से मिलाने की हवस थी हम को
काम अच्छा न था अंजाम भी अच्छा न हुआ

शहरयार




सारी दुनिया के मसाइल यूँ मुझे दरपेश हैं
तेरा ग़म काफ़ी न हो जैसे गुज़र-औक़ात को

शहरयार




सभी को ग़म है समुंदर के ख़ुश्क होने का
कि खेल ख़त्म हुआ कश्तियाँ डुबोने का

शहरयार




सफ़र का नश्शा चढ़ा है तो क्यूँ उतर जाए
मज़ा तो जब है कोई लौट के न घर जाए

शहरयार