कोई नया मकीन नहीं आया तो हैरत क्या
कभी तुम ने खुला छोड़ा ही नहीं दरवाज़ों को
शहरयार
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क्या कोई नई बात नज़र आती है हम में
आईना हमें देख के हैरान सा क्यूँ है
शहरयार
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क्या कोई नई बात नज़र आती है हम में
आईना हमें देख के हैरान सा क्यूँ है
शहरयार
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क्यूँ आज उस का ज़िक्र मुझे ख़ुश न कर सका
क्यूँ आज उस का नाम मिरा दिल दुखा गया
शहरयार
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लोग सर फोड़ कर भी देख चुके
ग़म की दीवार टूटती ही नहीं
शहरयार
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लोग सर फोड़ कर भी देख चुके
ग़म की दीवार टूटती ही नहीं
शहरयार
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मैं अकेला सही मगर कब तक
नंगी परछाइयों के बीच रहूँ
शहरयार
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