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2 लाइन शायरी शायरी | शाही शायरी

2 लाइन शायरी

22761 शेर

मिरी ख़ामोशियों पर दुनिया मुझ को तअन देती है
ये क्या जाने कि चुप रह कर भी की जाती हैं तक़रीरें

सीमाब अकबराबादी




मोहब्बत में इक ऐसा वक़्त भी आता है इंसाँ पर
सितारों की चमक से चोट लगती है रग-ए-जाँ पर

सीमाब अकबराबादी




नशात-ए-हुस्न हो जोश-ए-वफ़ा हो या ग़म-ए-इश्क़
हमारे दिल में जो आए वो आरज़ू हो जाए

सीमाब अकबराबादी




परेशाँ होने वालों को सुकूँ कुछ मिल भी जाता है
परेशाँ करने वालों की परेशानी नहीं जाती

सीमाब अकबराबादी




परेशाँ होने वालों को सुकूँ कुछ मिल भी जाता है
परेशाँ करने वालों की परेशानी नहीं जाती

सीमाब अकबराबादी




क़फ़स की तीलियों में जाने क्या तरकीब रक्खी है
कि हर बिजली क़रीब-ए-आशियाँ मालूम होती है

सीमाब अकबराबादी




रंग भरते हैं वफ़ा का जो तसव्वुर में तिरे
तुझ से अच्छी तिरी तस्वीर बना लेते हैं

सीमाब अकबराबादी