कहानी मेरी रूदाद-ए-जहाँ मालूम होती है
जो सुनता है उसी की दास्ताँ मालूम होती है
सीमाब अकबराबादी
ख़ुदा और नाख़ुदा मिल कर डुबो दें ये तो मुमकिन है
मेरी वज्ह-ए-तबाही सिर्फ़ तूफ़ाँ हो नहीं सकता
सीमाब अकबराबादी
ख़ुलूस-ए-दिल से सज्दा हो तो उस सज्दे का क्या कहना
वहीं काबा सरक आया जबीं हम ने जहाँ रख दी
सीमाब अकबराबादी
ख़ुलूस-ए-दिल से सज्दा हो तो उस सज्दे का क्या कहना
वहीं काबा सरक आया जबीं हम ने जहाँ रख दी
सीमाब अकबराबादी
क्या ढूँढने जाऊँ मैं किसी को
अपना मुझे ख़ुद पता नहीं है
सीमाब अकबराबादी
क्यूँ जाम-ए-शराब-ए-नाब माँगूँ
साक़ी की नज़र में क्या नहीं है
सीमाब अकबराबादी
क्यूँ जाम-ए-शराब-ए-नाब माँगूँ
साक़ी की नज़र में क्या नहीं है
सीमाब अकबराबादी