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2 लाइन शायरी शायरी | शाही शायरी

2 लाइन शायरी

22761 शेर

तअ'ज्जुब क्या लगी जो आग ऐ 'सीमाब' सीने में
हज़ारों दिल में अँगारे भरे थे लग गई होगी

सीमाब अकबराबादी




तअ'ज्जुब क्या लगी जो आग ऐ 'सीमाब' सीने में
हज़ारों दिल में अँगारे भरे थे लग गई होगी

सीमाब अकबराबादी




तेरे जल्वों ने मुझे घेर लिया है ऐ दोस्त
अब तो तन्हाई के लम्हे भी हसीं लगते हैं

सीमाब अकबराबादी




तुझे दानिस्ता महफ़िल में जो देखा हो तो मुजरिम हूँ
नज़र आख़िर नज़र है बे-इरादा उठ गई होगी

सीमाब अकबराबादी




वो आईना हो या हो फूल तारा हो कि पैमाना
कहीं जो कुछ भी टूटा मैं यही समझा मिरा दिल है

सीमाब अकबराबादी




वो दुनिया थी जहाँ तुम बंद करते थे ज़बाँ मेरी
ये महशर है यहाँ सुननी पड़ेगी दास्ताँ मेरी

सीमाब अकबराबादी




वो दुनिया थी जहाँ तुम बंद करते थे ज़बाँ मेरी
ये महशर है यहाँ सुननी पड़ेगी दास्ताँ मेरी

सीमाब अकबराबादी