इदराक ख़ुद-आश्ना नहीं है
वर्ना इंसाँ में क्या नहीं है
क्या ढूँढने जाऊँ मैं किसी को
अपना मुझे ख़ुद पता नहीं है
क्यूँ जाम-ए-शराब-ए-नाब माँगूँ
साक़ी की नज़र में क्या नहीं है
हुस्न और नवाज़िश-ए-मोहब्बत
ऐसा तो कभी हुआ नहीं है
'सीमाब' चमन में जोश-ए-गुल से
गुंजाइश-ए-नक़्श-ए-पा नहीं है
ग़ज़ल
इदराक ख़ुद-आश्ना नहीं है
सीमाब अकबराबादी