यूँ एहतिमाम-ए-रद्द-ए-सहर कर दिया गया
हर रौशनी को शहर-बदर कर दिया गया
सत्तार सय्यद
यूँ एहतिमाम-ए-रद्द-ए-सहर कर दिया गया
हर रौशनी को शहर-बदर कर दिया गया
सत्तार सय्यद
आख़िर इक रोज़ उतरनी है लिबादों की तरह
तन-ए-मल्बूस! ये पहनी हुई उर्यानी भी
सऊद उस्मानी
ऐसा है कि सिक्कों की तरह मुल्क-ए-सुख़न में
जारी कोई इक याद पुरानी करें हम भी
सऊद उस्मानी
ऐसा है कि सिक्कों की तरह मुल्क-ए-सुख़न में
जारी कोई इक याद पुरानी करें हम भी
सऊद उस्मानी
बहुत दिनों में मिरे घर की ख़ामोशी टूटी
ख़ुद अपने-आप से इक दिन कलाम मैं ने किया
सऊद उस्मानी
बरून-ए-ख़ाक फ़क़त चंद ठेकरे हैं मगर
यहाँ से शहर मिलेंगे अगर खुदाई हुई
सऊद उस्मानी