कब बन-बास कटे इस शहर के लोगों का
क़ुफ़्ल खुलें कब जाने बंद मकानों के
सत्तार सय्यद
कब बन-बास कटे इस शहर के लोगों का
क़ुफ़्ल खुलें कब जाने बंद मकानों के
सत्तार सय्यद
लहू में फूल खिलाने कहाँ से आते हैं
नए ख़याल न जाने कहाँ से आते हैं
सत्तार सय्यद
सहर को साथ उड़ा ले गई सबा जैसे
ये किस ने कर दिए रस्ते धुआँ धुआँ मेरे
सत्तार सय्यद
समुंदरों को सिखाता है कौन तर्ज़-ए-ख़िराम
ज़मीं की तह में ख़ज़ाने कहाँ से आते हैं
सत्तार सय्यद
समुंदरों को सिखाता है कौन तर्ज़-ए-ख़िराम
ज़मीं की तह में ख़ज़ाने कहाँ से आते हैं
सत्तार सय्यद
शायद अब ख़त्म हुआ चाहता है अहद-ए-सुकूत
हर्फ़-ए-एजाज़ की तासीर से लब जागते हैं
सत्तार सय्यद