इश्क़ सामान भी है बे-सर-ओ-सामानी भी
उसी दरवेश के क़दमों में है सुल्तानी भी
हम भी वैसे न रहे दश्त भी वैसा न रहा
उम्र के साथ ही ढलने लगी वीरानी भी
वो जो बर्बाद हुए थे तिरे हाथों वही लोग
दम-ब-ख़ुद देख रहे हैं तिरी हैरानी भी
आख़िर इक रोज़ उतरनी है लिबादों की तरह
तन-ए-मल्बूस! ये पहनी हुई उर्यानी भी
ये जो मैं इतनी सहूलत से तुझे चाहता हूँ
दोस्त इक उम्र में मिलती है ये आसानी भी
ग़ज़ल
इश्क़ सामान भी है बे-सर-ओ-सामानी भी
सऊद उस्मानी