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बादल की तरह रंज-फ़िशानी करें हम भी | शाही शायरी
baadal ki tarah ranj-fishani karen hum bhi

ग़ज़ल

बादल की तरह रंज-फ़िशानी करें हम भी

सऊद उस्मानी

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बादल की तरह रंज-फ़िशानी करें हम भी
शायद कभी इस आग को पानी करें हम भी

अब सिलसिला-ए-क़िस्सा-ए-शब टूट रहा है
अब इज़्न अता हो तो कहानी करें हम भी

हम को भी कभी देख हवाओं के सफ़र में
सहरा की तरह नक़्ल-ए-मकानी करें हम भी

ऐसा है कि सिक्कों की तरह मुल्क-ए-सुख़न में
जारी कोई इक याद पुरानी करें हम भी

इस लम्हा-ए-रुख़्सत के धड़क उठने से पहले
ठहरे हुए दिल तुझ को निशानी करें हम भी