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फ़ुरात-ए-फ़ासिला से दजला-ए-दुआ से उधर | शाही शायरी
furaat-e-fasila se dajla-e-dua se udhar

ग़ज़ल

फ़ुरात-ए-फ़ासिला से दजला-ए-दुआ से उधर

सरवत हुसैन

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फ़ुरात-ए-फ़ासिला से दजला-ए-दुआ से उधर
कोई पुकारता है दश्त-ए-नैनवा से उधर

किसी की नीम-निगाही का जल रहा है चराग़
निगार-ख़ाना-ए-आग़ाज़-ओ-इंतिहा से उधर

मैं आग देखता था आग से जुदा कर के
बला का रंग था रंगीनी-ए-क़बा से उधर

मैं राख हो गया ताऊस-ए-रंग को छू कर
अजीब रक़्स था दीवार-ए-पेश-पा से उधर

ज़मीन मेरे लिए फूल ले के आती है
बिसात-ए-मअरका-ए-सब्र-आज़मा से उधर

ये मेरे होंट समुंदर को चूम सकते हैं
हिकायत-ए-शब-ए-अफ़राद-ओ-आईना से उधर