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भर जाएँगे जब ज़ख़्म तो आऊँगा दोबारा | शाही शायरी
bhar jaenge jab zaKHm to aaunga dobara

ग़ज़ल

भर जाएँगे जब ज़ख़्म तो आऊँगा दोबारा

सरवत हुसैन

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भर जाएँगे जब ज़ख़्म तो आऊँगा दोबारा
मैं हार गया जंग मगर दिल नहीं हारा

रौशन है मिरी उम्र के तारीक चमन में
इस कुंज-ए-मुलाक़ात में जो वक़्त गुज़ारा

अपने लिए तज्वीज़ की शमशीर-ए-बरहना
और उस के लिए शाख़ से इक फूल उतारा

कुछ सीख लो लफ़्ज़ों को बरतने का सलीक़ा
इस शुग़्ल में गुज़रा है बहुत वक़्त हमारा

लब खोले परी-ज़ाद ने आहिस्ता से 'सरवत'
जों गुफ़्तुगू करता है सितारे से सितारा